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कविता

जल जीवन की कविताएँ

ओम नागर


(एक)

चुल्लू भर
डूबने के लिए

ओक भर
प्यास के लिए

अँजुरी भर
किसी के कमंडल में
विध्वंश के लिए

यहाँ तो
आँख भर बचा हैं
जिस में डबडबाता है
काला हीरा।

(दो)

धूप सूख कर
काँटा हुई

हवा सूख कर
हुई प्यास

पानी सूख कर
धरती

धरती सूख कर
हो गई आकाश

बादल पसीज कर
पानी न हुआ।

(तीन)

जहाँ नहीं पानी की
एक बूँद
वहाँ एक तालाब था कभी

जहाँ नहीं दिख रहीं
मुट्ठी भर रेत
वहाँ बहती थी एक नदी

जहाँ नहीं बचा हैं
एक भी पेड़
वहाँ जंगल था घना

जहाँ खड़ी दिख रही है
बहुमंजिला इमारत
वहाँ दबा पड़ा है एक तालाब
नदी की रेत
जंगल वाला पेड़।

(चार)

तपता हुआ दिन
पेड़ खजूर का

जहाँ जा बैठा पानी इन दिनों
छाँव है जितनी
उतने ही दूर है फल।

(पाँच)

पीतल की चरी में
भरा टँगा है जो बरसों से
घर की खूँटी पर
गंगाजल

जिसके आचमन को
लगी जनार होगी कितनी लंबी
कितनी छोटी
जल बिन
किसने देखी जीवन की पीठ।

(छह)

सबसे कर्कश
नल से पानी की बूँदों का टपकना

सबसे मनोरम
ऊँचे पहाड़ से नीचे गिरता हुआ झरना

सबसे सुंदर
कल-कल बहना लगता एक नदी का

सबसे दुर्गम
प्यास लिए सीढियाँ चढ़ना कुएँ की

सबसे आसान
जो पानी के सिवा होगा।

(सात)

एक कुआँ है
गाँव के बाहर / बड़ा-सा डस्टबीन

जिसकी दीवारों में उग आए
पीपल
लटके है औंधे मुँह

जरा-सी आहट
कि एक जोड़ी कबूतर
दुबक जाते है कुएँ की खोह में

पनघट है कुएँ की
रस्सियों के निशाँ भी जस के तस
पनिहारिन भी नहीं आती
गंगा-चरी पूजन तो अब हुई
गुजरे समय की बात

सब हैं कुएँ में
कुएँ के आस-पास
लेकिन उसके पेंदे में पानी नहीं हैं
इसीलिए तो चहचहाती जिंदगानी नहीं हैं।

(आठ)

तालाब भी हैं यूँ तो
गाँव की बगल में
पहले बड़ा था, अब हुआ छोटा /
क्रिकेट का मैदान

बावड़ी तो कब की मर गई दब कर
बहुत सुंदर हैं सीढ़ियाँ / मनमोवाणी

दुनिया में जो भी सुंदर है
वह पानी से है
जब पानी नहीं होगा
यह दुनिया वाकई हो जाएगी
असुंदर

सारी खूबसूरती पानी से बनती हैं
जिसके बिना
उसे एक दिन माटी में मिल जाना हैं।

(नौ)

सूख गई
जो नदी दूर थी गाँव से
अब बहुत दूर
तो उजड़ गई बस्ती

इतिहास में इनसान की बसावट
और उजाड़
दोनों पानी की बदौलत

सेनाएँ खड़ी होगी
जहाँ बचा होगा पानी प्यास-भर
हर सिम्त करबला होगा।

(दस)

जल ही जीवन हैं
पढ़ा बहुत
पर गुना नहीं किसी ने

जल हैं तो कल हैं
कहा बहुत
पर माना नहीं किसी ने
यह कह कर
कि कल किसने देखा हैं

"बिन पानी सब सून"
"कबिरा खड़ा बाजार में"
सबकी खैर ही माँगता रहा सदा
यहाँ हाट-हाट बिक गया पानी।
 


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